Thursday 27 February 2014

मिटटी की खुशबू

आज का दिन भी काफी व्यस्त रहा । हर रोज की तरह सुबह नौ बजे ऑफिस के लिए तैयार हो कर निकल गया , काम के लिए । काम, काम से याद आया, कितने अधूरे काम रह गये हैं पूरे करने के लिए । ज़िन्दगी में न जाने कितने सपने संजोये थे ,कुछ अपनों के लिए, कुछ खुद के लिए । जीवन की इस आपाधापी में सब धरे के धरे रह गये थे । कभी ख्याल आता है अब उम्र निकलती सी जा रही है, जब करना था, तब कहीं और खोये हुए थे, अब वक़्त नहीं तो लग रहा है, काश उन सपनों को जी लिया होता ।
                                          अब तो घरवाले भी कहते हैं, बेटा वक़्त से कौन जीत सका है । तुमने अपनी तरफ से इतनी कोशिश की, होना होता तो कब का हो गया होता । दिल नही मानता, शायद मेरी कोशिश में कमी रह गयी हो। कोई उम्र नही होती कोशिश करने के लिए, अभी थोड़ा वक़्त तो है ही , फिर से करूँगा । रोज का दिन व्यस्तता में गुजर जाता है, पर अब थोड़ा समय निकलूंगा ।कुछ करना है तो इतना तो करना ही होगा ।